Monday, August 4, 2008

मिटता नहीं है जेहन से, यूं छा गया कोई

आज सुनते हैं उस्ताद से एक गीत. बहुत - बहुत मीठा गीत है. सुनिये और बस अपने दिल को अच्छे से थामे रहिये:



यूं ज़िन्दगी की राह में टकरा गया कोई
इक रोशनी अंधेरे में बिखरा गया कोई

वो हादसा वो पहली मुलाकात क्या कहूं
इतनी अजब थी सूरत-ए-हालात क्या कहूं
वो कहर वो ग़ज़ब वो जफ़ा मुझको याद है
वो उसकी बेरुख़ी कि अदा मुझको याद है
मिटता नहीं है जेहन से, यूं छा गया कोई

पहले मुझे वो देख के बरहम सी हुई
फिर अपने ही हसीन ख़यालों में खो गई
बेचारगी पे मेरी उसे रहम आ गया
शायद मेरे तड़पने का अन्दाज़ भा गया
सांसों से भी क़रीब मेरे आ गया कोई

अब उस दिल-ए-तबाह की हालात न पूछिए
बेनाम आरज़ू की लज़्ज़त न पूछिए
इक अजनबी था रूह का अरमान बन गया
इक हादसा का प्यार का उन्वान बन गया
मंज़िल का रास्ता मुझे दिखला गया कोई

('सुख़नसाज़' आज से थोड़ा और 'अमीर' हो गया. रेडियोवाणी जैसे ज़बरदस्त संगीत-ब्लॉग के संचालक यूनुस आज से 'सुख़नसाज़' से जुड़ गए हैं. सो यह पोस्ट उनके यहां आने के स्वागत में समर्पित की जाती है)

4 comments:

रंजू भाटिया said...

वो हादसा वो पहली मुलाकात क्या कहूं
इतनी अजब थी सूरत-ए-हालात क्या कहूं
वो कहर वो ग़ज़ब वो जफ़ा मुझको याद है
वो उसकी बेरुख़ी कि अदा मुझको याद है
मिटता नहीं है जेहन से, यूं छा गया कोई

मजा आ गया इसको सुन कर ..बहुत बहुत शुक्रिया आपका इसको सुनवाने का

Vineeta Yashsavi said...

बहुत सुन्दर गीत. और यूनुस जी के आप के इस ब्लॉग पर आ जाने की आप को बधाई.

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर -आभार इस प्रस्तुति का.

दिलीप कवठेकर said...

खुशामदीद, Welcome!!