Tuesday, July 8, 2008

कभी तकदीर का मातम कभी दुनिया का गिला

बेग़म अख़्तर पर एक उम्दा पोस्ट भाई संजय पटेल लगा चुके हैं. आज उसी क्रम में सुनिये शकील बदायूंनी की एक बहुत मशहूर ग़ज़ल इसी अमर वाणी में:



ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूं आज तेरे नाम पे रोना आया

यूं तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी
आज कुछ बात है कि शाम पे रोना आया

कभी तकदीर का मातम कभी दुनिया का गिला
मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
हमको अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

6 comments:

डॉ .अनुराग said...

bahut khoob.......

siddheshwar singh said...

बहुत अच्छे
प्यार मोब्बत!
भाई लोगों,बेगम अख्तर के स्वर में 'निहुरे निहुरे बहारो अंगनवा' तो लगा दो!

Anita kumar said...

इस गजल के लिए शुक्रिया

Udan Tashtari said...

वाह वाह!! झूम उठे.

स्र की कलम said...

आनन्द........
क्या केह्त है.....अमइज़इन्ग

"अर्श" said...

begam akhtar sahiba ke gaye pasandida ghazalon mese ek hai ye mera iske liye aapko bahot bahot shukriya............


regards
Arsh