Sunday, July 6, 2008

मैं इन्तेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया

'जिगर' मुरादाबादी की ग़ज़ल मुहम्मद रफ़ी साहब की आवाज़:



साकी की हर निगाह पे बल खा के पी गया
लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया

ज़ाहिद, ये मेरी शोखी-ए-रिन्दाना देखना
रहमत को बातों बातों में बहला के पी गया

ए रहमत-ए-तमाम, मेरी हर ख़ता मुआफ़
मैं इन्तेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया

सरमस्ति-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई
दुनिया-ए-ऐतबार को ठुकरा के पी गया

3 comments:

siddheshwar singh said...

बहुत अच्छा साहब!
सुख्नसाज पर तो कमाल हो रहा है. रफ़ी साहब को सुनना बाकमाल!

दिलीप कवठेकर said...

मेरे पास बचपन मे इस गाने की रिकार्ड थी जो 78 r.p.m. पर चलती थी. उसके दूसरी ओर भी ऐसी हि एक गज़ल थी - जनाब गालिब की -

ये ना थी हमारी किस्मत के विसाले यार होता.

Nostalgia का भी कोइ पर्याय नही है.दिली सुकून के लिये कोइ क्या न करे?

अब यह दोनो गज़ले कहा से down load हो सकेगी?

मुनीश ( munish ) said...

aho dhan bhaag ! va sab vah!