Friday, July 4, 2008

मेरी दुनिया मुन्तज़िर है आपकी, अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइये

दो ढाई साल की उम्र से गाना शुरू कर देने वाले और मात्र चौदह साल की नन्ही आयु में स्वर्गवासी हो गए मास्टर मदन की प्रतिभा का लोहा स्वयं कुन्दन लाल सह्गल ने भी माना था. उनका जन्म २८ दिसम्बर १९२७ को जलन्धर के एक गांव खा़नखा़ना में हुआ था, जो प्रसंगवश अकबर के दरबार की शान अब्दुर्ररहीम खा़नखा़ना की भी जन्मस्थली था. ५ जून १९४२ को हुई असमय मौत से पहले उनकी आवाज़ में आठ रिकार्डिंग्स हो चुकी थीं. 


ये ग़ज़ल गुलज़ार और जगजीत सिंह की कमेन्ट्री के साथ कुछ साल पहले एच एम वी द्वारा 'फ़िफ़्टी ईयर्स आफ़ पापुलर गज़ल' के अन्तर्गत जारी हुई थी. जगजीत सिंह के मुताबिक मास्टर मदन सिर्फ़ तेरह साल जिए लेकिन यह सत्य नहीं है. इस के अलावा इस अल्बम में बताया गया है कि इन गज़लों का संगीत मास्टर मदन का है. यह भी सत्य नहीं है. ये गज़लें १९३४ में रिकार्ड की गई थीं यानी तब उनकी उम्र ७ साल थी. असल में इन गज़लों को १९४७ में 'मिर्ज़ा साहेबां' फ़िल्म का संगीत देने वाले पं अमरनाथ ने स्वरबद्ध किया था. सागर निज़ामी की इन गज़लों में मास्टर मदन की आवाज़ का साथ स्वयं पं अमरनाथ हार्मोनियम पर दे रहे हैं. तबले पर हीरालाल हैं और वायलिन पर मास्टर मदन के अग्रज मास्टर मोहन:



यूं न रह रह के हमें तरसाइए
आइये, आ  जाइये, आ जाइये
 
फिर वही दानिश्ता ठोकर खाइये
फिर मेरे आग़ोश में गिर जाइये
 
मेरी दुनिया मुन्तज़िर है आपकी
अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइये
 
ये हवा 'साग़र' ये हल्की चांदनी
जी में आता है यहीं मर जाइये
 
(मास्टर मदन की एक और ग़ज़ल आप को जल्दी सुनने को मिलेगी यहीं)

7 comments:

Advocate Rashmi saurana said...

Ashokji sundar gajal ko sunane ke liye aabhar.
kya aap meri ek help kr sakte hai. please agar aapko time mile to bata dijiye ki ye gaane kis tarha se blog me post karte hai. or ye gane dalne ke liye koi web sight hai.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर पहले भी कई बार सुनी है बहुत दिनों बाद सुनी यह अब शुक्रिया

Ashok Pande said...

एडवोकेट रश्मि सौराना जी

मुझे ashokpande29@gmail.com पर मेल भेजिये. आपकी यथासंभव सहायता करने का जतन करूंगा.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Bahut pyari gazal hai. Padhwane aur sunwane ka Shukriya.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहुत सुंदर

सागर नाहर said...

धन्यवाद अशोक जी

मास्तर मदन बहुत कम जिये पर कम इतने समय में भी जितना गाया; कमाल गाया..

सुखनसाज़ के श्रोताओं में किसी को भी मास्तर मदन के आठ दुर्लभ गाने चाहियें तो संपर्क करें..

दिलीप कवठेकर said...

सात साल की उम्र कोइ उम्र होती है भला.
मगर क्या गला, क्या घुमाव, क्या ठहराव..

मज़ा आ गया.

आज पहली बार यहा पर आया हु, अब लौटना मुश्किल है.