Monday, June 23, 2008

इश्क की मार बड़ी दर्दीली, इश्क में जी न फंसाना जी

कुछ साल पहले मेहदी हसन साहब ने ललित सेन के संगीत निर्देशन में 'तर्ज़' नाम से एक अल्बम जारी किया था। इस अल्बम में शायर गणेश बिहारी 'तर्ज़' की ग़ज़लों को हसन साब के अलावा शोभा गुर्टू जी ने भी आवाज़ दी थी।

नौशाद साहब की कमेंट्री से सजी इस अल्बम को बहुत ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं हुई लेकिन वैराग्य और मिठास में पगी मेहदी हसन साब की आवाज़ इस सीधी सादी कम्पोजीशन को अविस्मरणीय बना देती है।


इश्क की मार बड़ी दर्दीली, इश्क में जी न फंसाना जी
सब कुछ करना इश्क न करना, इश्क से जान बचाना जी

वक़्त न देखे, उम्र न देखे, जब चाहे मजबूर करे
मौत और इश्क के आगे लोगो, कोई चले न बहाना जी

इश्क की ठोकर, मौत की हिचकी, दोनों का है एक असर
एक करे घर घर रुसवाई, एक करे अफसाना जी

इश्क की नेमत फिर भी यारो, हर नेमत पर भारी है
इश्क की टीसें देन खुदा की, इश्क से क्या घबराना जी

इश्क की नज़रों में सब यकसां, काबा क्या बुतखाना क्या
इश्क में दुनिया उक्बां क्या है, क्या अपना बेगाना जी

राह कठिन है पी के नगर की, आग पे चल कर जाना है
इश्क है सीढ़ी पी के मिलन की, जो चाहे तो निभाना जी

'तर्ज़' बहुत दिन झेल चुके तुम, दुनिया की जंजीरों को
तोड़ के पिंजरा अब तो तुम्हें है देस पिया के जाना जी




(अवधि: ८ मिनट ३४ सेकेंड)

1 comments:

शायदा said...

वाह...क्‍या बात है।